आहे! री ज़िंदगी तेरी माया, मोह में तूने मनुष्यों को फँसाया, समझ ना पाया कोई तेरी काया, अचानक से हँसा... आहे! री ज़िंदगी तेरी माया, मोह में तूने मनुष्यों को फँसाया, समझ ना पाया कोई तेरी...
कविता सी दिखना चाहती हूं मैं लिखना चाहती हूं। कविता सी दिखना चाहती हूं मैं लिखना चाहती हूं।
हर घर में यही कहानी है आजकल घर घर में हैं बस ऐसे ही जनाब ! हर घर में यही कहानी है आजकल घर घर में हैं बस ऐसे ही जनाब !
जब लोग बड़े तो होते हैं,पर बड़े नही होते! जब लोग बड़े तो होते हैं,पर बड़े नही होते!
भीड़ में भी तन्हा, रहने की कसम खा ली अपना होकर भी वो अनजान सी बनती है। भीड़ में भी तन्हा, रहने की कसम खा ली अपना होकर भी वो अनजान सी बनती है।
क्योंकि मैं औरत हूँ। क्योंकि मैं औरत हूँ।